ज़िंदगी सबकी अग्नि-परीक्षा ले रही !
ज़िंदगी सबकी अग्नि-परीक्षा ले रही !
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ज़िंदगी सबकी अग्नि-परीक्षा ले रही !
हर किसी को लगता है कि वो ही सही!
सामने वाले की कोई सुनता ही नहीं !
बस खुद की गुणगान से उसे फुर्सत नहीं !!
खुद को सही साबित करने को ,
कोई कसर नहीं कोई छोड़ता !
सही, गलत साक्ष्य प्रस्तुत कर वो ,
खुद को सदा ऊपर ही रखना चाहता !!
कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता कि ,
उभय पक्षों की ही सोच सही रहती !
इस हकीकत को नहीं कोई जानता ,
हर कोई बस,खुद की ही सदा सोचता !!
सबके ज्ञान-विज्ञान प्राप्ति का स्त्रोत अलग है ,
ज्ञान के स्तर से ही बुद्धि उनकी विकसित होती !
बुद्धि की कमी हो तो सही परख नहीं हो सकती !
बस किसी मसले पे अपनी ही गीत गाई जा सकती !!
सबकी परिस्थिति को कोई नहीं समझ सकता !
औरों को भी सदा अपने चश्मे से ही देखा करता !
जब कोई किसी के अंत: में नहीं झाॅंक सकता !
सही-गलत के मापदंड पे कैसे उसे तोल सकता ??
सही-गलत के मापदंड पे कैसे उसे तोल सकता ??
_ स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कुमार कर्ण ।
__ किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : १३/०६/२०२१.
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