*ज़िंदगी में बहुत गम है*
ज़िंदगी में बहुत गम है
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जिंदगी में बहुत गम है।
देखता हूँ बड़ा कम है।
जो कहा वो करा हरदम,
बात में तो दिखा दम है।
आँसुओं से पलक भीगी,
दो नयन भी बड़े नम है।
राह दिखती नहीं आगे,
चार खाने विकट तम है।
सोच कर यूँ बढ़ो पहले,
वो अकेला नहीं, हम है।
खोखला प्रेम मनसीरत,
देखिए यूँ विषम-सम है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)