ज़िंदगी तुझसे कहां जी भरता है
तुझे देखे बिना कहां चैन मिलता है,
ये लगता है जुड़ा जन्मों का रिश्ता है।
जी लेते हैं जब साथ मिलता है तेरा।
जिंदगी…. तुझसे कहां जी भरता है।
आइना है मेरा दर्पण भी है जैसे तू,
देखकर जिसे ख्वाब मेरा संवरता है।
ख्वाहिशों में भी तेरा इंतजार रहता है,
जिंदगी…तुझसे कहां जी भरता है।
मन्नतों के धागों में जैसे बांधा हो कहीं,
धागा मन का तुझमें ही उलझता है।
गांठ उलझन की हो मन बिखरता है।
जिंदगी… तुझसे कहां जी भरता है।
है उजाले चाहतों के दरमियां तेरे,
तेरे उजाले से चमन ये महकता है।
दूर होकर भी दिल बन धड़कता है,
जिंदगी.. तुझसे कहां जी भरता है।
स्वरचित एवं मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश