ज़िंदगी क्या है क्या नहीं पता क्या
ज़िंदगी क्या है क्या नहीं पता क्या
सज़ा क्या जुर्म है कैसा पता क्या
आइना सब को रख लेता है दिल में
हुस्न बेहुस्न का उसको पता क्या
चिराग़ लड़ता रहा तीरगी से
हवा की दुश्मनी उसका पता क्या
ख़ुद अपने आप से लड़ कर फ़तह हो
ज़माने भर से लड़ के फ़ायदा क्या
दूसरे मज़हबों को कोसने से
किसी मजहब का होता है भला क्या
हवायें विश उगलती चल रही हैं
आँधियों के लिए अब रह गया क्या
इल्म तालीम बिकती जिस वतन में
होनहारों के लिए रास्ता क्या
सिर्फ़ अपने लिए ही जीने वालों
रहोगे आख़िरी दम तक जवाँ क्या
बच्चे सारे ग़लत रास्ते निकलते
बेइमानी के पैसे से हुआ क्या
खुली नाली सड़ी है घर के आगे
पक्के सुंदर घरों को देखना क्या
एलेक्शन में फूँकी गाढ़ी कमायी
उम्मीद में कोई नेता बचा क्या
पाल देता है कोयल के भी बच्चे
कौया फिर भी बुरा उसका गुनाह क्या
किताबों में लिखा तो बहुत कुछ है
जो पढ़ते ही नहीं उनके लिए क्या
हर क़दम कई बाधा दौड़ सा था
ज़िंदगी और लेगी इम्तिहाँ क्या