ज़िंदगी को चुना
मैंने ज़िंदगी को चुना
तब भी ,जब
मोम बन कर पिघल जाना
तय था मेरा,
या
भाप बन कर उड़ जाना मेरा
फिर भी मैंने ज़िंदगी को चुना
जैसे चुनता है फूल
पत्थर से भी निकल आना
हँसना और मुस्कुराना……
मैंने ज़िंदगी को चुना
तब भी ,जब
मोम बन कर पिघल जाना
तय था मेरा,
या
भाप बन कर उड़ जाना मेरा
फिर भी मैंने ज़िंदगी को चुना
जैसे चुनता है फूल
पत्थर से भी निकल आना
हँसना और मुस्कुराना……