ज़िंदगी को किस अंदाज़ में देखूॅं,
ज़िंदगी को किस अंदाज़ में देखूॅं,
कुछ अंदाज़ा वो लगाने नहीं देती!
हर दिन बदलता है स्वरूप इसका,
कभी हॅंसना चाहूॅं, कभी रोना चाहूॅं…
खुद के हिसाब से हॅंसने रोने नहीं देती!
…. अजित कर्ण ✍️
ज़िंदगी को किस अंदाज़ में देखूॅं,
कुछ अंदाज़ा वो लगाने नहीं देती!
हर दिन बदलता है स्वरूप इसका,
कभी हॅंसना चाहूॅं, कभी रोना चाहूॅं…
खुद के हिसाब से हॅंसने रोने नहीं देती!
…. अजित कर्ण ✍️