ज़िंदगी के सफ़हात …
ज़िंदगी के सफ़हात …
हैरां हूँ
बाद मेरे फना होने के
किसी ने मेरी लहद को
गुलों से नवाज़ा है
एक एक गुल में
गुल की एक एक पत्ती में
उसके रेशमी अहसासों की गर्मी है
नाज़ुक हाथो की नरमी है
कुछ सुलगते जज़्बात हैं
कुछ गर्म लम्हों की सौगात है
काश
तुम मेरे शिकवों को समझ पाते
जलते चिराग का दर्द समझ पाते
मेरी पलकों को
इंतज़ार की चौखट में
कैद करने वाले
कितना अच्छा होता
साथ इन गुलों के
तुम भी आ जाते
बीते लम्हों की दौलत से
एक लम्हा
अपने वस्ल का
मेरी लहद के चिराग पे
सजा जाते
मेरी रूह को
सकूं मिल जाता
मेरी ज़िंदगी के सफ़हात को
हँसी मज़मून
मिल जाता
सुशील सरना