ज़िंदगी के रंग थे हम, हँसते खेलते थे हम
ज़िंदगी के रंग थे हम,
हँसते खेलते थे हम,
मुसीबतों का सामना किया,
और अपनी मुस्कान बनाए रखा!!
लेकिन कभी-कभी आती है,
इतनी उदासी की लहर लेकर,
बहुत रोता है ये दिल बेबसी में,
मन की अंधियारी उधार लेकर!!
मकड़ी की तरह बुन बुन कर,
उम्मीद की चादर खींच ली है,
मूंगे का घिसा रंग धोया है,
जीवन तामझाम में लिपटी है!!
पर जैसे हर रात के बाद,
सूरज उठकर चमकता है,
वैसे ही सुबह हो कर आएगी।
खुद की मर्जी से वो दिन होगी।
तब रहेगी सब उदासी कहाँ?
उदासी की ये चादर भी उठ जाएगी,
हँसी और खुशियों से भरी रहेगी यह जिन्दगी,
प्यार और उम्मीद की बौछार तन में बरसाएगी!!
जब तक मन में जीने की चाह बाकी है,
उदासी पर लिखी कविता सच्चा साथी है!!
✍️✍️✍️
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
बिलासपुर, छत्तीसगढ़