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6 Sep 2021 · 1 min read

ज़िंदगी किसे अच्छी नहीं लगती ?

जिंदगी किसे अच्छी नहीं लगती ,
ये महबूबा किसे भली नहीं लगती ।

सताती -रुलाती है बेशक हँसाती भी ,
मगर फिर भी इसकी हर अदा भाती ।

कभी तो सब अरमान पूरे हो जाते हैं ,
और कभी नाचीज़ चाहों को तरसाती ।

चाहे मौकापरास्त कह लो या बेवफा ,
हालात बदलते ही यह पेंतरा बदलती ।.

गम -खुशी है सिंगार जिसके हरदम ,
आह और वाह में सदा यह झुलाती ।

कोई इसे समझ सके तो कामयाब इंसा ,
वरना ये पहेली सभी से नहीं सुलझती ।

कोई तक़दीर का मारा हो जाता है हताश ,
जिंदगी की डोर इसके हाथों से छूट जाती ।

4 Comments · 195 Views
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