ज़िंदगी का स़िला
सोचता हूं ज़िंदगी में क्या किया? क्या खोया? क्या पाया?
हर बार ज़िंदगी को नफ़े नुक़सान में तौल कर देखा।
यहां तक कि रिश्तो की अहम़ियत को भी दौलत की नज़रों से देखा ।
जितने भी फ़रेब खाए वो दौलत की ख़ातिर।
जितने भी रिश्ते बिगड़े वो दौलत की ख़ातिर।
इंसानिय़त को दरक़िनार कर दौलत कमाने की होड़ में शामिल हुआ।
क्या अज़ाब है और क्या स़बाब है को न जान सका।
इस दौड़ में दोस्त और दुश्मन का फ़र्क समझ न सका।
कुछ आमाल भी पाल लिए जिनकी गिरफ़्त से छूटना दुश्वार हुआ।
वक्त बीतते कुछ पुराने रिश्ते बिगड़कर टूट गए ।
कुछ नए रिश्ते बनते चले गए ।
दोस्त दोस्त ना रहे कुछ मुंह मोड़ कर चले गए कुछ दुश्मन बन गए।
कुछ तो जिन्हें हम अपना दुश्मन समझते रहे पुरानी दुश्मनी भुलाकर दोस्त बन गए ।
कभी हमने अपनों से फरेब खाए तो ग़ैरों ने संभाला।
रफ्त़ा रफ्त़ा ज़िंदगी गुज़रती गई और फिर एक मोड़ ऐसा आया आया।
जहां हम सिर्फ अकेले थे तब किसी ने ने मुझे झिंझोड़कर जगाया।
मैंने पूछा कौन है तू ? वो बोला मैं तेरा ज़मीर हूं।
ख्वाबों में तू डूबा रहा जगा तुझे हक़ीकत का सामना कराने आया हूं ।
जिंदगी के असल मायने क्या है तुझे ये आज समझाने आया हूं।
अब तक तू दौलत के नशे में डूबा रहा ये भुलाकर दौलत ज़िंदगी का मक़सद नहीं ज़िंदगी जीने का जरिया है।
पर तूने ये हक़ीकत भुलाकर दौलत को अपना मक़सद बना लिया है।
उसका नतीजा है के तेरा कोई हमदम कोई दोस्त नहीं तू त़न्हा होकर रह गया है।
अब भी संभल जा छोड़कर अपना ग़ुरुर।
जगा ले अपनी सोई हुई इंसानिय़त का वज़ूद।
मिल जाएगा मक़सद तुझे तेरे जीने का।
ख़त्म हो जाएगा तेरी त़न्हाई का ये स़िलस़िला ।
होगा तुझ पर अस़र मुफ़लिसों और मज़लूमों की दुआ़ओं का ।
पाएगा तू सुक़ून और करेगा हास़िल स़िला ज़िंदगी का।