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28 Jul 2017 · 1 min read

*ज़िंदगी* (कविता)

“ज़िंदगी” (कविता)
*******

अजब पहेली बनी ज़िंदगी उलझ गई जज़्बातों में
मोती के दानों सी बिखरी फ़िसल गई हालातों में,
कालचक्र सा घूम रहा है समय बीतता बातों में
आहें भरती सिसक-सिसक कर दर्द भरे आघातों में।

संघर्षों के पथ पर चल कर नया मुकाम बनाना है
शूल बिछे हैं जिन राहों में उन पर फूल खिलाना है,
सुख-दुख आते जाते रहते साहस नहीं गँवाना है
तूफ़ानों से लड़कर कश्ती साहिल तक पहुँचाना है।

दुर्गम राह विवशता छलती धूप देह झुलसाती है
फूट गए कदमों के छाले आस नेह बरसाती है,
रिश्ते-नाते नोंच रहे हैं पाप भूख करवाती है
चाल चले शतरंजी शकुनी किस्मत खेल खिलाती है।

परिवर्तन का नाम ज़िंदगी नित नया सबक सिखलाती
नेह संपदा पूत लुटा कर पतझड़ मौसम बन जाती,
आँख-मिचोली खेल खेलती मौत अँधेरी मँडराती
सहनशीलता धैर्य सिखा कर साथ मनुज का ठुकराती।

नाम-डॉ.रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
प्रस्तुति-२८.७.२०१७

Language: Hindi
1 Like · 456 Views
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