ज़िंदगी।
कैसे बताऊं मैं तुझको हाल जिंदगी का।
अच्छा नही कोई यूं आमाल जिंदगी का।।1।।
हर रोज ही गुनाह पर गुनाह कर रहा हूं।
बेकार गुजर रहा है ये साल जिंदगी का।।2।।
तन्हा ही गुजारी हैं तन्हा ही गुज़ार देंगें।
खुदा ने ना बक्शा दिलदार जिंदगी का।।3।।
हर दरे हाकिम पर गया शिफा के लिए।
हमेशा नही मिलता इलाज जिंदगी का।।4।।
काफी वक्त काटा है उसने दवाओं संग।
बेदर्द होता है यूं अस्पताल जिंदगी का।।5।।
ख्वाहिशें क्या होती है उसको ना पता।
हमेशा रहा है वो मोहताज ज़िंदगी का।।6।।
अभी भी लगा रखी है उम्मीद खुदा से।
यूं हर पल ना होता बेजार जिंदगी का।।7।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ