ज़रूरत है सोचने की
आज की निरन्तर बदलती लाइफ स्टाइल और भौतिकवादी युग में रिश्तों के मायने ही बदल गये हैं, इंसान की अपेक्षाएं इतनी बढ़ गई हैं कि संस्कार, कर्तव्य, प्यार, विश्वास व अपनापन सब भूली- बिसरी बातें हो गई हैं। आज मानसिकता यह हो गई है कि हर रिश्ते को निभाने से पहले हम उसमें नफा और नुकसान देखने लगे हैं और इस मानसिकता का सबसे बुरा प्रभाव हमारे बुजुर्गों पर पड़ा है।
आज बुजुर्गों की जो दयनीय स्थिति है, उससे प्रायः सभी परिचित है। अफसोस तो यह होता है कि हमारे भारतीय समाज में माता-पिता को ऊपर वाले का स्थान दिया गया है। उनका अनादर और तिरस्कार ऊपर वाले का अपमान समझा जाता है और जहां श्रवण कुमार जैसे पुत्र को आदर्श के रूप में देखा जाता हो वहां अनादर की बढ़ती शर्मनाक घटनाएं हमारे समाज में आये बदलाव को दर्शाती हैं। आज लोभ और सम्पत्ति के लिए कलियुगी संताने अपने बुजुर्ग माता पिता को मौत के घाट उतारने से भी नहीं हिचक रही हैं।
आज की पीढ़ी के सामने भौतिक सुख साधनों के प्रति अपेक्षाएं इतनी बढ़ गई है कि हमारे आदर्श, संस्कार और हमारे अपने ही अपनी अहमियत खोते जा रहे हैं और यही कारण है कि आज हमारे “अधिकतर परिवारों में बुजुर्ग उपेक्षित, एकांकी और अपमानित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यही कारण है कि आज आये दिन समाचार पत्रों और टी.वी. पर बुजुर्गों पर होने वाले अत्याचारों और उनकी हत्याओं की घटनाएं आम बात हो गई है।
वे मां-बाप जो हमारी एक मुस्कराहट के लिए जमीन आसमान एक कर देते हैं, वे मा बाप जो हमारी छोटी-छोटी खुशियों पर अपना सर्वस्त्र निछावर कर देते हैं, स्वयं गीले में सोकर हमें सूखे में सुलाते हैं। वह मां-बाप जो हमारी जरा-सी पीड़ा पर कराह उठते हैं, वे ‘मां-बाप जो हमारी सलामती की दुआओं के लिए घंटों के हिसाब से ऊपर वाले के सामने दामन फैलाये रहते हैं, जो हमारे लिए अपनी नींदों और चैनो के करार को लुटाते हैं, जो हमारी खुशी में ही अपनी खुशियां तलाशते हैं, जो हमारी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं और जब बारी हमारी (बच्चों की) अपने माता-पिता के लिए कुछ करने की आती है, तब स्थिति क्यों बदल जाती है? और ऐसे स्नेह लुटाने वाले माता-पिता को उनकी आंखों के तारे घर से बेघर कर दें, उन्हें बोझ समझें तो सोचो ऐसी स्थिति में उनके मन पर क्या गुजरेगी? माता-पिता जब वृद्धावस्था में पहुंच जाते हैं तो उन्हें भी बच्चों की तरह ही प्यार-दुलार और सहारे की जरूरत होती है, तब वह अपने बच्चों के लिए समस्या क्यों बन जाते हैं?
समय आ गया है कि युवा पीढ़ी अपनी जिम्मेदारियों और कर्त्तव्यों को समझे, माता-पिता को किसी भी परिस्थिति में बोझ न समझकर उन्हें अनमोल धरोहर समझे। उनके बुढ़ापे का सही प्रबन्ध करें, उन्हें वह मान सम्मान दें, जिसके वे वास्तव में हकदार हैं, वहीं बुजुर्ग भी अपने बुढापे को ध्यान में रखकर अपने भविष्य के लिए कुछ उपयोगी प्लानिंग अवश्य करें, वहीं इस बात का भी ध्यान रखें कि उनका बुढ़ापा दूसरों के लिए उपयोगी बनेन कि बोझ आज हम युवा है तो कल हम वृद्ध भी बनेगे, जैसा हम बोयेंगे, वैसा ही काटेंगे,
डाॅ फौज़िया नसीम शाद