ज़रा सब्र कीजिये
करने दो ये हिसाब ज़रा सब्र कीजिये
मिल जायेंगे जवाब ज़रा सब्र कीजिये
ठहरो ज़रा सी देर अंधेरा ये जाएगा
उगता है आफ़ताब ज़रा सब्र कीजिये
नज़दीक इसके जाइयेगा तोड़ियेगा मत
देगा महक गुलाब ज़रा सब्र कीजिये
होकर के एक मुल्क के सब नौजवान ये
लायेंगे इन्क़िलाब ज़रा सब्र कीजिए
चलना है सच की राह पे या छोड़नी डगर
करना है इंतिख़ाब ज़रा सब्र कीजिए
नाटक ये कौन सा है पता चल ही जाएगा
हट जाएगा हिजाब ज़रा सब्र कीजिये
ताबीर किस तरह से हो बस देखना यही
देखा अभी है ख़्वाब ज़रा सब्र कीजिये
लेकर के आब साथ में जाना वहाँ मियाँ
सहरा में है सराब ज़रा सब्र कीजिये
‘आनन्द’ आ रहे वो यहाँ थोड़ी देर में
क्यूँ है ये इज़्तिराब ज़रा सब्र कीजिये
शब्दार्थ:- सराब = मृगतृष्णा / भ्रमजाल, इज़्तिराब = बेचैनी, व्याकुलता, अधीरता
– डॉ आनन्द किशोर