ज़रा पढ़ना ग़ज़ल
महफिल में तेरी आये हैं,ज़रा पढ़ना ग़ज़ल।
साथ सन्नाटों के साये है,ज़रा पढ़ना ग़ज़ल।
बेसबब बात बढ़ाने से कोई नहीं है फायदा,
ये चेहरे क्यूं मुरझाये हैं, ज़रा पढ़ना ग़ज़ल।
अपनी बातों का मर्म,तुम न जान पायें कभी
नासमझ बन के पछताये है,ज़रा पढ़ना ग़ज़ल।
ऐसे तन्हाई ओढ़ कर तो कुछ नहीं होगा
दर्द दिल में समाये हैं,ज़रा पढ़ना ग़ज़ल।
खलबली सी मची हैं,रूह के चार सू ,
सवाल नये उभर आये हैं,ज्ररा पढ़ना ग़ज़ल।
सुरिंदर कौर