ज़मीर
ज़मीर
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ये ज़मीर भी अजब चीज़ है न ,
कभी आखिरी दम तक ज़ोर लगाता है !
और कभी पहली हुंकार देकर ही सो जाता है !
कभी दुनिया के पैंतरे देख चीखता चिल्लाता है !
कभी सब कुछ लुटता देख कर भी मौन रह जाता है !
सच में बहुत ही अजब चीज़ है यह ज़मीर !
कभी कौड़ियों के भाव खुद ही बिक जाता है .
कभी दुनिया की दौलत देकर भी कोई खरीद नहीं पाता है!
ज़रूरत पड़ने पर तो यह हमेशा ही मर जाता है
और फिर कभी अंजाने में ही प्रकट हो जाता है !
न जाने किस मिट्टी का बना है यह ज़मीर,
कभी खद अपनी ही बोली लगा इतराता है !
फिर कभी सामने आइना देखकर भी बेशर्मी से मुस्कुराता है!
कभी तालों में बंद रहकर भी ऊंचे दाम पा जाता है !
कभी खुले बाजारों में भी बिक नहीं पाता है !
लेकिन चाहे जैसा भी हो यह ज़मीर
एक न एक दिए अपने
किए का हिसाब ज़रूर पाता है !
~सुजाता