ज़माने को समझ बैठा, बड़ा ही खूबसूरत है,
ज़माने को समझ बैठा, बड़ा ही खूबसूरत है,
मगर मुझको पता था क्या, यहाँ बस चालबाजी है।
कहा मुझसे तुम्हीं बस एक, मेरे मात्र रहबर हो,
दिलासा दे किया धोखा, गई हाथों से बाजी है।
सितमगर आज ऐसे मिल रहे, हर मोड़ पर मौला,
ख़ुदा का हो करम मुझ पर,मिले अब फासला इन से~
बता हाफ़िज़ खुद को, रेतते हर दिन गला चुपके,
भला समझूँ बता कैसे, कहाँ तक जालसाजी है।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’ (नादान)