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18 May 2023 · 1 min read

ज़माने का चलन

सदा चाहा भला सबका, नहीं चाही बुराई है।
इसी इक बात ने मेरी, फजीहत भी कराई है।
सबक़ सिखला दिया मुझको, समय ने और लोगों ने –
जियूंगा मतलबी होकर, क़सम यह मैंने खाई है।

मुसीबत में तुम्हारा साथ कोई भी नहीं देगा।
बनोगे रहनुमा जिसके वही तुमको द़गा देगा।
करेंगे वार पीछे से तुम्हारे खैरख्वा बनकर-
ज़मीं पाँवों तले छिनकर, छुड़ा कर हाथ चल देगा।

सिला मिलता है नेकी का बदी से इस ज़माने में।
बड़ी बदनामियाँ मिलती अजी रिश्ते निभाने में।
सभी ख़ुदग़र्ज़ हैं अपने भले से काम है सबको-
लगे रहते यहाँं सब एक दूजे को गिराने में।

कभी सच बोलने वाले, ज़माने को नहीं भाते।
असत मधु घोलने वाले, दिलों में हैं जगह पाते।
ज़माने का चलन है झूठ को सच से बड़ा कहना-
नहीं जो सीखते यह सब, तरक्की कर नहीं पाते।

रिपुदमन झा ‘पिनाकी’
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

Language: Hindi
231 Views

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