ज़माना बदल गया है जी ! ( हास्य व्यंग काव्य)
अब न लड़की शादी की बात चलने ,
पर काम के बहाने उठकर जाए ।
बल्कि पास बैठकर बेझिझक बड़ों ,
के सामने अपना प्रस्ताव रखे ।
वर और उसके घर वालों की ,
अब न रही हिम्मत वधु से योग्यता पूछने की ,
बल्कि वधु खुद वर की योग्यता पूछे,
और अपनी शर्तें रखे विवाह करने की ।
विवाह के समय भी वधु मंडप पर ,
बिना घूंघट के चली आए ।
मंथर गति से तो वो चले मुस्कान लिए ,
मगर नैनों में लज्जा नजर न आए ।
मंडप पर स्थित सोफे पर बैठे बिंदास ,
मेहमानों से खूब बतियाये ।
ना लज्जा न संकोच वधु निडरता से,
वर के संग चुहलबाज़ी करे और मुस्काए ।
विदाई के समय में भी गले मिले ,
अपने हर। संबंधियों संग ।
उन सब का रो रो कर बुरा हाल ,
और वधु सबको “hai” कहकर ,
डोली में बैठ जाए वर के संग ।
ज़माना बदल गया है भाई ! ,
वधु विवाह कर परदेश कहां जाती है !
ससुरालियों के संग पग फेरी कर ,
मायके के पास ही घर बसा लेती है।
माता पिता जो बेटी के घर का ,
पानी पीना भी अनुचित समझते थे ।
अब वो भोजन तक कर लेते है,
इसमें कुछ हिचक महसूस नहीं करते ।
“बेटी को दिया जाता है लिया नहीं जाता,”
ऐसे कहने वाले अब लेन देन की बात करने लगे ।
तोहफों के आदान प्रदान में भी अपनी ,
पसंद खुलकर बयां करने लगे ।
बराबरी का जमाना है तो पति पत्नी ,
दोनो उच्च प्रतिष्ठा नौकरी वाले होते है ।
इसलिए गृह कार्य और बच्चे संभालने में,
दोनो ही एक दूजे का हाथ बंटाते हैं।
और नहीं तो फुल टाइम मेड रख लेते हैं।
इस प्रकार ज़माने के साथ साथ ,
विवाह के दस्तूर भी बदल गए।
समाज की परवाह नही ,विवाह संबंध ,
स्वेच्छा से तोड़े या निभाए गए ।