ज़ब घिरा हों हृदय वेदना के अथाह समुन्द्र से
ज़ब घिरा हों हृदय वेदना के अथाह समुन्द्र से
ज़ब खींच न पाओ आप सांस को अंदर पूरी शक्ति लगाकर भी,
ज़ब बहता हुआ रक्त भी जमने लगे
दिन का उजाला आँखों को चुभने लगे
नींद कोसों दूर लगने लगे रातों में
आप स्वयं से भी डरते हों सन्नाटो में
ज़ब अंतर्मन टूट रहा हों और आपका सामर्थ्य सहसा छूट रहा हों
उस क्षण कभी भूल से भी,
न ढूंढना क़ोई सहारा,बहती भावनाओं का किनारा
न जताना अपनी विवशता,
ना खोलना हृदय बिलखता,
ध्यान रहे उस क्षण क़ोई न आए जीवन में
जिस क्षण तुम टूटे हुए हों,
जीवन मार्ग में हर किसी से रूठें हुए हों
जो भी आएगा वो जानेगा, समझेगा असमर्थता तुम्हारी
कराएगा अनुभव की सहानुभूति हैं तुमसे
तुमसे प्रेम की बातें होंगी
पुनः मायाजाल में फ़साने को मुलाकाते होंगी
किन्तु सुनो, माना कितनी ही आवश्यकता हों तुम्हारी,
किसी का हाथ थाम लेना मात्र ही क़ोई हल नहीं,
आप स्वयं में पूर्ण हों, क़ोई विकल्प नहीं..
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