ज़ख्म
मत पूछो कितने ज़ख्म खाए हुए हैं ,
हम तो यारो हालात के सताए हुए हैं .
ज़बीं पर क्या है लिखा ,नहीं जानते ,
हम तकदीर को अपनी कहाँ समझ पाए हैं. ?
जिंदगी ने दिए हमें मौके बे शुमार मगर ,
मंजिल -ऐ- आरजू लिए ये कहाँ भटक आये हैं.?
तस्कीं नहीं होती हमें बेसब्र दीवाना समझ लो ,
ना जाने कहाँ से अरमानो का सागर भर लाये हैं.
कभी तो आयेगा अच्छा वक्त हमारा भी ,
आँधियों में भी उम्मीद की शमा जलाये हुए हैं.
खवाब जो भी देखे उनकी ताबीर हो ना सकी ,
बनना चाह था क्या ,और क्या बन आये हैं.
यादों से ,वादों से तो कभी अश्कों से बहलाते हैं ,
खुद को समझाने ,की लाखों तरकीबें लड़ा आये हैं.
अब तू ही दिखा कोई रास्ता अनु को ऐ इलाही ,
बड़ी आरजू लेकर लिए तेरे दर पर हम आये हैं.