ज़ख्म जो अपनों ने दिए …
हम ही लेकर आए थे तुम्हारी जिंदगी में बहार,
मगर खुद हमने तुम्हारे कांटों से ज़ख्म खाए ।
उस पर भी हम पर खंजर चलाना नहीं छोड़ा,
घबराकर फिर खुदा को हम पुकार आए ।
हम ही लेकर आए थे तुम्हारी जिंदगी में बहार,
मगर खुद हमने तुम्हारे कांटों से ज़ख्म खाए ।
उस पर भी हम पर खंजर चलाना नहीं छोड़ा,
घबराकर फिर खुदा को हम पुकार आए ।