ज़ख्म ऐ दिल
मत पूछो कितने ज़ख्म खाए हुए हैं ,
हम तो हालातों के सताए हुए हैं ।
ज़बीं पर क्या है लिखा नहीं जानते ,
मगर उम्मीद की शमा जलाये हुए हैं।
ख़्वाब जो देखे उनकी ताबीर होगी ?
जो चुनी थी मंजिल वो तो छोड़ आए हैं।
हमें नहीं मालूम तकदीर यूं बदल जायेगी ,
हम कितने सारे अरमान पाल आए हैं।
यह अरमान बड़ा देते है हमारी बेचैनी ,
इनकी खातिर हम बहुत बेसब्र हो आए हैं।
जिस्म तो छूट जायेगा, रूह क्या करे?
खुदा भी पूछेगा ये रोग क्या लगा आए हैं।।
ऐसे में ” अनु ” करेगी गुजारिश ए खुदाया!
हार चुके जिंदगी ,अब तेरे दर पर आए हैं।