जहांँ प्रेम था।
जहांँ प्रेम था,
वहांँ तुम चलें गये,
लुटा के धन और दौलत ,
शोहरत भी बहा गये,
दो अक्षर की खातिर,
सारे रिश्ते नाते रह गये,
सच में हृदय से था,
तन मन सब लुटा के,
तुम चलें गये,
आँसू आँखों से सूख गये,
कहे बिन तुम चलें गये,
जहांँ प्रेम था ,
इधर से सच,
उधर से झूठ,
फिर भी तुम चलें गये ।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।