जहाँ में चाँद सा ऊँचा नहीं है
जहाँ में चाँद सा ऊँचा नहीं है
सदा वो आसमाँ उजला नहीं है
चला जाये सदा को छोड़ दुनियाँ
जमीं ये घर कभी तेरा नहीं है
कमाया पाप तूने जिन्दगी में
यहाँ से जो चला नाता नहीं है
हसीं हसरत दिखायी आज तूने
जिसे देखा जिया खोया नहीं है
गयी जो दूर इतना तू यहाँ से
बिना तेरे रहा जाता नहीं है
मुझे जो याद तेरी क्यों सताती
गमों की थाह से निकला नहीं है
मुहब्बत धर्म मेरे इस जहाँ का
किसी की जान का सौदा नहीं है
मिला वो जब बहुत अरसे बाद तब
बिछुड़ कर के हमें भूला नहीं है
मिलेगी राह परवाने कहाँ तक
अभी कोई उसे वादा नहीं है
डॉ मधु त्रिवेदी