जहाँ भर में
जहां भर में अमन का ग्राफ़ नीचे जा रहा है
जिसे देखो वही तलवार खींचे जा रहा है
क़लम से काटनी थी नफ़रतों की पौध जिसको
वही अब नफ़रतों की पौध सींचे जा रहा है
हमें उपदेश देता था हमेशा अम्न के जो
वही हाकिम वो देखो आँख मीचे जा रहा है
कबूतर अम्न का है बम धमाकों से परेशां
कभी इसके कभी उसके दरीचे जा रहा है
भर आया नाव में पानी मगर नाविक है ज़िद पर
वो अँजुरी बाँध कर पानी उलीचे जा रहा है
……………..शिवकुमार बिलगरामी