*जहाँ पर घर नहीं बसते, वहीं पर वृद्ध-आश्रम हैं(मुक्तक)*
जहाँ पर घर नहीं बसते, वहीं पर वृद्ध-आश्रम हैं(मुक्तक)
_________________________
जहाँ पति और पत्नी के ही, झगड़े रोज हरदम हैं
जहाँ फुर्सत नहीं है कैरियर से अपने ही गम हैं
बिखरती जिन्दगी है, टूटते परिवार हैं जिनके
जहाँ पर घर नहीं बसते, वहीं पर वृद्ध-आश्रम हैं
—————————————-
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,रामपुर,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451