जहाँ तुम रहती हो
इस खुदगर्ज़ी के खेल से कोशों दूर,
ख़्वाबों के भी आगे।
एक सुनेहरा सा बसेरा है,
जहाँ तुम रहती हो।
समय के इन उलझनों से परे,
दूरियों के फासलों से आगे।
एक सालों पुराना रिश्ता है,
जहाँ बस चाहत बेहती है।
यादों की पगडंडियों पे चलकर,
चला आता हूँ तुम्हारे आगे।
एक नींद सी गहरी शांति है,
जहाँ तुम रहती हो।
कही-अनकही लफ्ज़ों से बनी,
हकीकत की बंदिशों से आगे।
एक टिमटिमाती हुई सी दुनिया है,
जहाँ तुम मुझे अपना कहती हो।
– सिद्धांत शर्मा