जहाँ जहाँ प्रियतम विराजमान
**जहाँ जहाँ प्रियतम विराजमान*
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मंदिर,मस्जिद बन जाते वो स्थान
जहाँ जहाँ हो प्रियतम विराजमान
प्रीत की डोरी में बंधी हैं भावनाएँ
खुदा का प्रेम परिन्दों पर एहसान
रिश्तों की किश्तों में हो रही बोली
स्नेह और मोह की बन्द है दुकान
कुदरत की खिदमत में हैं मशगूल
रब्ब जैसा यार कर दिया है प्रदान
जब कभी प्रेमी की राहों से गुजरें
दिख जाए बस मुख पर मुस्कान
चाहे बिखर जाए तिनका तिनका
महबूब के नीड़ का न हो नुकसान
ख्यालों,ख्वाबो में विचार हों जिंदा
बेशक काल्पनिक हो प्रेम भुगतान
मनसीरत को मिली मन की मुराद
उपासना शैली में प्रेयसी पहचान
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)