जहर कहां से आया
नाम न बता पाओ तो मार देंगे
आधार न दिखाओ तो मार देंगे
भंवर लाल जैन याददाश्त को चुका था
जब नाम पूछा , आधार मांगा, डर गया
जेब से निकाल, दो सौ रुपए दे चुका था
हाथ जोड़ जोड़ जाने कितना रो चुका था
मनःस्थिति जो भी हो, जान की भीख आंखों में थी
नाम न जुबां पर आया पर याचना भावों में थीं
एक थप्पड़ दो थपड्ड, थप्पड़ पर थप्पड़ घूंसा लात, मारने लगा
धर्म का नाम ले ले कर एक राक्षस, यादाश्त को चुके वृद्ध को मारने लगा
आदमी नहीं, मूक पशु सा वो पिट रहा था
आधार आधार दिखाओ को
वो क्या समझता, बस अपनी प्राण वायु बचाने प्रयास रत था
अशक्त था साधन विहीन आंख में भय भरा
प्राण जाने कब उड़ा, क्या उसे बाद तक था पता
क्या इस धरा को हो गया
न सब्र उसका ढह गया
वृद्ध को क्यों न उसने
चीर अपना वक्ष उसने अंदर किया
आदमी जो न था काबिल खुद की
सुरक्षा के लिए
क्या मुसीबत बनेगा किसी धर्म मजहब
के लिए
अंदर से जो खुद त्रास में, जी रहा था
खतरा किसी के वास्ते, वो कर रहा था
किस तरह में कहूं
मैं जन्म से किस देश का
गुरुनानक, बुद्ध, महावीर
के देश का
किसकी की लगी बद्दुआ
इस देश की ऐसी दशा
रो रहा अब दिल यहां
जो देश गांधी की करुणा
से फला
मार देते हैं फकीरों, मासूमों,
मजलूम, भूलते वृद्ध को
आधार न देने पर, नाम न बताने
पर
नकली राष्ट्रभक्त यहां
कसाई को क्या दर्द जो पशु
को काटते
इस तरह पशु को भी न
लाठियों से मारते
इतनी घृणा , इतना घृणित दिमाग
आखिर ये सब किस लिए
मानना का विनाशी मानव बने
आखिर ये सब किस लिए
डा.राजीव “सागर”