जवानी
तुम चाहतों का समंदर सजाते रहे!
हम बिला वजह आंसू बहाते रहे!!
खामोश हो गई आवाज़ टकराकर!
हम रेत के घरोंदे बनाते मिटाते रहे!!
सैलाब समंदर का शांत कब हुआ?
होकर मदहोश बस गोटे लगाते रहे!!
याद तुम भी रखना ज़हा में सदा
ना रहेगी ये जवानी जो इतराते रहे!!