जवानी
गुजरता है बचपन, तो आती है जवानी।
हर लम्हा पिरोता है, बेनाम एक कहानी॥
कभी यादों में खोया,
वह रात भर ना सोया।
कभी जगते हुए भी,
लगे नींद में हो खोया॥
खुद में है मस्त कैसा,
देखो अजब रवानी।
हर लम्हा पिरोता है•••••••••॥१॥
गुजरे वो गर चमन से,
खिल जाए गुल की कलियां।
वीरान थी जो पहले,
महफिल सी लगती गलियां॥
अंग अंग है मय का प्याला,
मदहोश जिंदगानी।
हर लम्हा पिरोता है•••••••॥२॥
रहता है कशमकश में,
अल्हड़ कभी दिखाए।
हर गम को दफन करके,
तनहा भी मुस्कुराए॥
‘अंकुर’ हर जवां दिल में,
हसरत है कुछ मस्तानी।
हर लम्हा पिरोता है•••••••••॥ ३॥
-✍️ निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
छतरपुर मध्यप्रदेश 9752606136