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3 Jul 2018 · 1 min read

जल

हैं बाट जोहती नल पर…….

कुछ सोच रहीं क्यों जल जीवन?
कुछ कलश सहेजे कमर पर।
हैं बाट जोहती नल पर………

कोई न नद जल कूप शेष
बिन छाँव बिलखते,हृदय कलेश।
स्याम देह, विचलित यौवन,
कड़ी धूप,कठिन कर्म-वचन- मन,
रिक्त कलश अहसास,
हुई जल बिन मन मीन उदास।
कुछ सोच रहीं क्यों जल जीवन?
कुछ कलश सहेजे कमर पर।
हैं बाट जोहती नल पर………।

बढ़ रही कड़ी सुन धूप,
तमतमाता दिवस हुआ कुरूप।
तन मन झुलसाती हुई लू ,
ज्वालामुखी हुई सुन भू।
नीलम अंबर जल रहा,
हुए निर्जल नद कूप और वसुधा।
कुछ सोच रहीं क्यों जल जीवन?
कुछ कलश सहेजे कमर पर।
हैं बाट जोहती नल पर………।

नीलम शर्मा……✍️

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 322 Views
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