जल
बचपन में पढ़ा था
जल भिगोता है,
शीतलता देता है,
जल का अर्थ अब कुछ भिन्न सा,
नहीं दिखता जल अब नदियों में,
सूखे तालाब पोखर और मन के गागर भी,
नहीं दिखता जल अब कुओं में,
दिख जाता है बंद बोतलों में बिकते,
अनोखी चमक और ठंडक लिए,
सिर्फ उनके लिए दमक है जिनके बटुए में,
खूब दिखता है,गरीब की आँखों में,
जो नहीं कमा पाता खाने लायक भी,
जब अंतड़ियां इठतीं भूख से सांझ को,
आँखों में दिखता बेबसी का जल,
दिख जाता है उस बेटी की आँखों में भी,
जो पढ़ना चाहती है आगे पर नहीं पढ़ पाती,
ब्याह हो जाता है जल्दी जमाने के डर से जिसका,
उस बच्चे की आँखों में भी दिखता पीड़ा का जल,
चाय की दूकान पर काम करते करते जिससे,
टूट जाते गिलास जिससे गलती से,
अब मालिक नहीं देगा पैसे शाम को,
ये भी जल के रूप हैं कुछ अलग से,
पर ये जल शीतलता नहीं देता,
जलाता हृदय को भीतर ही भीतर।
वर्षा श्रीवास्तव”अनीद्या”