जल
विधा-गीत
व्यर्थ इसे करता है जो, उसकी नादानी है।
जल ही जीवन है धरती पर, अमरित पानी है।
भर डाले सब कूप पोखरा, जंगल काट दिए।
पर्यावरण बिगाड़ दिए अरु, मौगत मोल लिए।
नदियाँ नाला पाट रहे हो, क्या मनमानी है।
जल ही जीवन है धरती पर, अमरित पानी है।
जीवन आज बचाना है तो, व्यर्थ न नीर करो।
स्वच्छ धरा सह निर्मल पानी, यह तस्वीर भरो।
पानी के बिन जीवन का अब, खत्म कहानी है।
जल ही जीवन है धरती पर, अमरित पानी है।
बूंद-बूंद संचित करने का, आओ यत्न करें।
संचय कर बारिश की बूंदें, अब भूगर्भ भरें।
जबतक जल है तब-तक यह, जीवन मुस्कानी है।
जल ही जीवन है धरती पर, अमरित पानी है।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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