जल ही “जरूरत”
जल हीं “जरूरत”
इससे ही तो धरा पावन है,
इससे ही तो जीवन है।
सहे जो संभालो बचाओ,
क्योंकि जल ही तो जीवन।।
जल नहीं तो कल नहीं,
यह बात सही हो जाएगी।
नहीं बचेगा पशु पक्षियों कोलाहल,
हरी-भरी धरा नष्ट हो जाएगी।।
दादा नाना ने नदी नाले देखें,
पापा मम्मी ने कुआ बावड़ी।
हम देख रहे नल बोतल में पानी,
हमारी संतान जरा सोचो क्या देखने वाली।।
आज नहीं कुछ कर पाए तो,
बहुत मुश्किल मैं हुए जीवन।
पानी से ही सारी धरती,
पानी से ही गगन।।
कहे पा”रस” पानी और वाणी सा जितना कम उपयोग उतना ही अच्छा है, जीवन वही तो सच्चा है।।