जल से निकली जलपरी
जल से निकली जलपरी, श्वेत सुनहरा रंग|
अंग-अंग जादू भरा,मादकता के संग।।
मुख रंजित ज्यों चंद्रमा,काया कनक किशोर।
रजत किरण की रश्मियाँ, छिटक रही चहुँ ओर।।
मुदित मदिर मंदाकिनी,उज्ज्वल स्वर्ण हिलोर।
उदित हुई ज्यों क्षीर से, प्रथम प्रभा की भोर।।
पंख सुनहरे तैरते,करती जल से प्यार।
इठलाती कुछ इस तरह, छेड़े सरगम तार।।
मदमाती मनमोहिनी,नव यौवन मधुमास।
अद्भुत अनुपम सुन्दरी,छवि पद्म विन्यास।।
चंपकवर्णी चातकी,चंचल चपला नैन।
मतस्य कन्या रमणियाँ,सरस सुधा सम बैन।।
श्री सुख सौरभ से भरी,कलियों-सी मुसकान।
शाश्वत सुषमा स्वर्ग की,उज्ज्वल स्वर्ण-विहान।।
मत्स्य-सुता कामायनी,मद की मधुर उफान।
उछले सागर आँक पर,चकित मुग्ध हतज्ञान।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली