जल रहे हैं गाँव (कविता)
जल रहे गाँव
हवाले है आग के
बरगद का छांव ,
देश है जल रहा
जल रहे गांव |
कहाँ गयी बाग से
केशर की क्यारी ,
रिश्तों के दंश से
मानवता हारी ,
छोड़ दिया भवंर में
नाविक ने नाव |
देश है …….गाँव ||
आदमी में बढ़ रही
द्वेष की खाई ,
रिश्ते का खून अब
करते है भाई ,
दुश्मनी के दलदल में
फंस गए पांव |
देश है ………………गांव |
चरित्र की खोज का
किसको है मर्म ,
सभी बताते यहाँ
दूजे का धर्म
कुर्सी बेशर्म पर
लगता है दांव |
देश है ………………गांव ||
चढ़ गया माथे अब
मौसम का भंग ,
उतर रहा आज
यहाँ रिश्तों का रंग ,
मरहम की आस में
रोते है घाव |
देश ……………गांव ||
बदले विचार अब
बदल गयी रीत ,
बचपन के खेल भूले
मौसम के गीत ,
सम्बेदना को भस्म किया
मन का अलाव |
देश ……………गांव ||
संबंधो में पनप रही
अब कैसी लाचारी ,
लूट रही आज यहाँ
अपनों से नारी ,
“तनहा”को देता नहीं
पडोसी भी ठांव |
देश ………..गांव ||