जली हुई रोटी
एक शाम माँ ने दिन भर की लम्बी थकान एवं काम के बाद जब डिनर बनाया तो उन्होंने पापा के सामने एक प्लेट सब्जी और एक जली हुई रोटी परोसी । मुझे लग रहा था कि इस जली हुई रोटी को देखकर पापा अपना आपा खो देंगे और मम्मी को जी भरकर जली – कटी सुनायेंगे , पर पापा ने मम्मी से एक भी शब्द नहीं कहा ।
पापा ने उस रोटी को बड़े आराम से खा लिया, मैंने माँ को पापा से उस जली हुई रोटी के लिये “साॅरी” बोलते हुये जरूर सुना था । और मैं ये कभी नहीं भूल सकता , जो पापा ने मम्मी के सॉरी बोलने के बाद कहा था , पापा ने कहा था कि तुम जानती हो कि “मुझे जली हुई कड़क रोटी बेहद पसंद है ।”
यह कहकर पापा ने उस बात को वहीं खत्म कर दिया । लेकिन मेरे मन में शंका उत्पन्न हो गई कि ऐसा नहीं हो सकता है । पापा झूठ बोल रहे हैं । कोई भी आदमी जली हुई रोटी खाना क्यों पसंद करेगा ।
देर रात को मैंने पापा से पूछा , पापा क्या आपको सचमुच जली हुई रोटी पसंद है । उन्होंने मुझे अपनी बाहों में लेते हुये कहा – बेटा तुम्हारी माँ ने आज दिन भर ढ़ेर सारा काम किया ।और वो सचमुच बहुत थकी हुई थीं । ऐसी थकान के बाद जब भी कोई रोटी बनाने बैठेगा , तो वह बेमन से ही रोटी बनायेगा । और उस समय उसका ध्यान रोटी सेंकने पर कम अपनी थकान की तरफ ज्यादा होगा । उन्होंने समझाया कि वैसे भी एक जली हुई रोटी किसी को ठेस नहीं पहुंचाती है । परन्तु कठोर – कटु शब्द ठेस जरूर पहुंचाते हैं ।
उन्होंने मुझे आगे समझाया कि तुम्हें पता है बेटा –
जिंदगी भरी पड़ी है –
अपूर्ण चीजों से…
अपूर्ण लोगों से…
कमियों से…
दोषों से…
मैं भी स्वयं सर्वश्रेष्ठ नहीं , साधारण हूँ । और शायद ही किसी काम में ठीक हूँ । उन्होंने कहा कि मैंने इतने सालों में सिर्फ यही सीखा है कि –
एक दूसरे की गलतियों को स्वीकार करो…।
अनदेखी करो…
और चुनो , पसंद करो , आपसी संबंधों को सेलिब्रेट करना ।
उन्होंने कहा कि बेटे जिंदगी बहुत छोटी है । उसे हर सुबह दु:ख , पछतावे , और खेद , के साथ जताते हुए बर्बाद न करो ।
पापा ने कहा कि जो लोग तुमसे अच्छा व्यवहार करते हैं , उन्हें प्यार करो और जो नहीं करते उनके लिये अपनापन – सहानुभूति रखो ।
किसी ने क्या खूब कहा है –
“मेरे पास वक्त नहीं उन लोगों से नफरत करने का , जो मुझे पसंद नहीं करते ।”
क्योंकि मैं व्यस्त हूँ उन लोगों को प्यार करने में , जो मुझे पसंद करते हैं…!!!