जलियांवाला बाग
चारदीवारी एक बाग था हमारे शहर में
मशवरा कर रहे थे, जो कठिनाइयां थी हमारे सफर में
एक कानून आया था बहुत ही काला
जिसने हमारे बेगुनाहों को जेल में डाला
शांतिपूर्ण सभा थी, सैफ़ुद्दीन – सत्यपाल के रिहाई का
वो तोड़ना चाहते थे, हमारा रिश्ता भाई- भाई का
कसूर ना थी कोई हमारी, जनसभा थी तैयारी की
हम तो कर रहे थे विरोध, हुई अवैध गिरफ्तारी की
हम तो शामिल थे दमन के विरुद्ध
तभी किया उसने रास्ता अवरुद्ध
वो जनरल, डायर नहीं कायर था
तभी इतना ज्यादा किया फायर था
लाशें बिछाकर निर्दोषों की वो राजनीति कर गया
सजा के नाम पर हंटर कमीशन इस्तीफे का हुक्म दे गया।