जलियाँवाला बाग
सुनो भद्रे! यहाँ तुम धीरे से आना,
सूखे पत्ते हैं यहाँ पग धीरे से रखना।
इन पर्णों ने साक्षी बन जो झेला है,
वो विधि का इक भयावह विगत-खेला है।।
यहाँ की नीरवता! हाँ, उसे भंग मत करना,
मौन है यहाँ प्रकृति! हाँ, उसे तंग मत करना।
यहाँ अंतर्धान हुई हैं कुछ सदात्माएँ,
यहीं हुई हैं शांत वे ज्वालाएँ।।
यहाँ वसंत भी मदमाता नहीं आता,
नहीं मिलन के गीत वो गुनगुनाता।
धीरे से पग धर वो इसे सहलाता है,
चढ़ा दो प्रसून श्रद्धांजलि दे जाता है।।
सुनो! ये शोक स्थल है यहाँ
विटप भी स्थिर हैं चक्षु मींचे,
मत छूना इनके अवयव कोई,
हैं ये वीरों के शोणित से सींचे।
ये उपवन है पर यहाँ कोई उत्सव न मनाना,
बस मौन-श्रद्धा के दो फूल यहाँ चढ़ा जाना।
यहाँ जीवन है पर कोई मुखरता नहीं,
यहाँ कीट-पतंग-भ्रमर हैं, पर कोई रवता नहीं।।
यहाँ बाल-किशोर-वृद्धों ने गोलियाँ खाई हैं,
यहाँ हजारों जवानियाँ रक्त में नहाई हैं।
यहाँ कोकिलें भी रुदालियाँ गाती हैं,
यहाँ करुण स्वर में बुलबुलें किस्से सुनाती हैं।।
देखो भन्ते! जब भी तुम यहाँ आओगे,
देखो भन्ते! गर तुम कभी यहाँ गाओगे।
तो कंठ में थोड़ी करुणा भरकर ले आना,
उन शहीदों की जय के दो फूल चढ़ा जाना।।
सोनू हंस