Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Aug 2022 · 1 min read

जला रहा हूँ मैं

यूँ खयाली पुलाओ पका रहा हूँ मैं
उम्मीदों के अलाव जला रहा हूँ मैं ।
देके तकलीफ़ों को तसल्ली दिल से
बेवकूफ खुद को ही बना रहा हूँ मैं।
अब है आपकी मर्ज़ी माने न माने
हक़ीक़त से रुबरू करा रहा हूँ मैं।
देखना वक्त खुद बदल देगा उसे
वक्त से पहले ही बता रहा हूँ मैं।
अरे!मेरा क्या!आज हूँ कल नहीं
आंधियों में चराग जला रहा हूँ मैं ।
क्या समझता है तू अजय खुद को
बस यही बात तो समझा रहा हूँ मैं।
– अजय प्रसाद

Language: Hindi
1 Like · 193 Views

You may also like these posts

पिता की याद।
पिता की याद।
Kuldeep mishra (KD)
****तुलसीदास****
****तुलसीदास****
Kavita Chouhan
सांसों को धड़कन की इबादत करनी चाहिए,
सांसों को धड़कन की इबादत करनी चाहिए,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मेरी कलम आज बिल्कुल ही शांत है,
मेरी कलम आज बिल्कुल ही शांत है,
Ajit Kumar "Karn"
किसी के साथ सोना और किसी का होना दोनों में ज़मीन आसमान का फर
किसी के साथ सोना और किसी का होना दोनों में ज़मीन आसमान का फर
Rj Anand Prajapati
मंजिल तक पहुँचाना प्रिये
मंजिल तक पहुँचाना प्रिये
Pratibha Pandey
ये दिल्ली की सर्दी, और तुम्हारी यादों की गर्मी
ये दिल्ली की सर्दी, और तुम्हारी यादों की गर्मी
Shreedhar
मानव का मिजाज़
मानव का मिजाज़
डॉ. एकान्त नेगी
अर्ज किया है
अर्ज किया है
पूर्वार्थ
सजना है मुझे सजना के लिये
सजना है मुझे सजना के लिये
dr rajmati Surana
कुछ मुक्तक
कुछ मुक्तक
Dr.Pratibha Prakash
आज फिर ....
आज फिर ....
sushil sarna
4628.*पूर्णिका*
4628.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
जोड़ियाँ
जोड़ियाँ
SURYA PRAKASH SHARMA
घर घर मने दीवाली
घर घर मने दीवाली
Satish Srijan
स्वर्गीय लक्ष्मी नारायण पांडेय निर्झर की पुस्तक 'सुरसरि गंगे
स्वर्गीय लक्ष्मी नारायण पांडेय निर्झर की पुस्तक 'सुरसरि गंगे
Ravi Prakash
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
Dr. Bharati Varma Bourai
International Chess Day
International Chess Day
Tushar Jagawat
तुम ही हो
तुम ही हो
Arvina
इंतज़ार
इंतज़ार
Ayushi Verma
मुस्कुराता बहुत हूं।
मुस्कुराता बहुत हूं।
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
अकेले हुए तो ये समझ आया
अकेले हुए तो ये समझ आया
Dheerja Sharma
कल सबको पता चल जाएगा
कल सबको पता चल जाएगा
MSW Sunil SainiCENA
SP56 एक सुधी श्रोता
SP56 एक सुधी श्रोता
Manoj Shrivastava
वाकई, यह देश की अर्थव्यवस्था का स्वर्ण-काल है। पहले
वाकई, यह देश की अर्थव्यवस्था का स्वर्ण-काल है। पहले "रंगदार"
*प्रणय*
कृष्ण सा हैं प्रेम मेरा
कृष्ण सा हैं प्रेम मेरा
The_dk_poetry
दीवारों की चुप्पी में
दीवारों की चुप्पी में
Sangeeta Beniwal
अमर क्रन्तिकारी भगत सिंह
अमर क्रन्तिकारी भगत सिंह
कवि रमेशराज
ये सोच कर ही
ये सोच कर ही
हिमांशु Kulshrestha
तू तो सब समझता है ऐ मेरे मौला
तू तो सब समझता है ऐ मेरे मौला
SHAMA PARVEEN
Loading...