!! जलता हुआ चिराग़ हूँ !!
जलता हुआ चिराग़ हूँ, यूं तो जमानें के लिए
लोग जलाते हैं, अंधेरा मिटाने के लिए —
मंदिरों के ठौर, देखी हैं कुछ सच्चाईयाँ
बोलते पत्थर नहीं, सच को बताने के लिए
बेजान पत्थरों पे देखी, आस्था है इस क़दर
सर झुकाते हैं, सभी बिगड़ीं बनाने के लिए
मांग सकता है जो जितना, मांगता है उम्रभर
वर, मांगता है वो नहीं मै को मिटाने के लिए
घर के ख़ुशी के वास्ते जो पूजता है देवियां
करता नहीं कोई जतन, बेटी बचाने के लिए
बदलता है रंग रूप व बघारता है शेखियां
ज़िद्द है,वह जो है नहीं उसको दिखाने के लिए
ख्वाहिशें लाखों हैं लेकिन चाहता है और से
छुपा लेता सारा ज़ख्म बाप घर बचाने के लिए
बड़ा गुनाह है “चुन्नू” अब तो सच भी बोलना
निकल पड़ते हैं सिरफिरे, हस्ती मिटाने के लिए
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ (उ.प्र.)