जर जर झिरती जिंदगी
कभी खिलखिलाती कभी मन्द मन्द मुस्कुराती हो तुम
कभी सताती कभी आंखों मे नमी देती हो तुम ,
तुमसे ही बन जाती हो निराली गज़ल
कभी कर देती हो इन्सान को कजल !!
कभी तुम मोहब्बत की तालीम देती हो,
कभी नफ़रत की दाह सिखाती हो!!
कभी तुम प्रियसी का गजरा सजाती हो,
कभी आँखो मे कजरा कजराती हो!!
कभी तन्हाई कभी महफ़िल से रुबरु कराती हो तुम ,
कभी अपनो को पराया कभी पराये को अपना कहलवाती!!
एक अलग सी उधेड़बुन दिलाती हो तुम
कभी गालिब कभी हसन बनाती हो तुम !!
कभी झील सी शान्त हो जाती हो,
अगले पल सुनामी का कहर ढाती हो!!
जिन्दगी तुम भी ना क्या क्या कराती हो,
कभी खुदा कभी राम जपवाती हो!!
कभी नीरस हो जाती हो, कभी तितली सी इठ लाती हो ,
कभी इस पात कभी उस पात हो जाती हो!!
कभी गिला करते तुमसे, कभी स्नेह दर्शाते,
हर बखत निराले रूप बदलाती तुम हो!!
कभी झरना सी शीतलता बहाती हो
फ़िर ज्वाला अग्न बन जाती हो!!
जिन्दगी तुम भी ना-बड़ी बेइमान हो,
हमे ईमान सिखाती हो, खुद धोखा दे जाती हो!!
युक्ति वार्ष्णेय “सरला”