जरूरत @लघुकथा
एक दिन रास्ते से गुजरते हुए
बस यूं ही देखते हुए गुजर रहा था
जिन लोगों ने कूड़ा समझकर डाल दिया था,
कुछ लोग उसे इकट्ठा कर रहे थे,
यही उनकी रोजीरोटी थी,
.
एक कपड़ों की दुकान पर पहुंचा,
सभी लोग अपनी मनपसंद रंग साईज खोज रहे थे,
एक छोड़ रहा था,
दूसरा उसे खरीद रहा था,
समानता कहीं न थी,
जो दिखाई पड़ रही थी
वो थी जरूरत.
जरूरत की चीज़.
प्रकृति की एक श्रृंखला होती है
जो बनावटी नहीं स्वाभाविक होती है,
एक दूसरे को जोड़ना.
शायद आदमी यह कला नहीं जानता,
वह मस्तिष्क लगाता है.
और अपनी खुद की प्रवृति भूल जाता है.
यही द्वंद्व/द्वैत वा झगडे का कारण