जरा सी जिंदगी…
जरा सी जिंदगी के लिए,
उम्रभर यूँ भटकते रह गए,
मिली जो मंजिल भी मुसाफिर को,
कदमों के निशान ढूँढते रह गए…
अपनी सी जो हैं ये दुनिया कहीं,
बस कहने की दो बातें हैं,
मिले फिजुल का वक्त कहीं,
ये मिलने को चले आते हैं….
तुम्हारें मकान का नंबर आज भी याद हैं हमें,
चाहे कितने भी रंग बदल लो अपनी दीवारों के,
धूल तो जमीं ही होगी कहीं एक कोने में,
जहाँ पड़ी होगी रद्दी अपनी ही यादों की….
नींद जरा सी सुकुन देती हैं,
पर नींद ही हरजाई रातभर आती नहीं,
आँखों का पानी सुख भी जाए,
बस कहानी तनहाई की खत्म होती नहीं….
अक्सर मिलना बिछड़ना
एक खेल रहा तकदीर का,
तेरी नीयत का जो मौसम बदला तो,
रंग बदलता आया तेरी तस्वीर का…..
अब के कहते हैं, इश्क ना दोहराना हैं,
हसीन चेहरे तो हैं हजारों महफिल में,
दो – चार नगमों के बाद,
उनको भी उठकर चले जाना हैं…..
#ks