“ जरा संभल जाओ “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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वो जमाना ही ना रहा
जब लोग एक
दूसरे को सुनते थे !
प्यार से प्यार की
भी बातें होती थी !
अच्छी बातें वेहिचक
कही जाती थी !
अब तो यदि आपने किसी को
कुछ कह दिया ,
तो फिर दोबारा
आपके दर्शन कभी होंगे नहीं !
पिता अपने बच्चों को भी
कुछ कह नहीं सकता !
माँ अपनी बेटियों को
कहने से कतराती हैं !
अजीब -अजीब सा
मंज़र देख रहे हैं !
कहने को मित्र हैं
पर एक दूसरे से
बातें नहीं होती !
राहों में यदि टकरा भी गए
तो पहचान नहीं होती !!
कई तो एसे भी हैं ,
कि दिन- रात
तंग किया करते हैं !
कभी व्हाट्सप्प पर
उधार के पोस्टों से
प्रहार करते रहते हैं !
स्वयं अपनी प्रतिक्रिया
भी नहीं लिख सकते हैं !
उन्हें उनकी गलतियों का
एहसास तब होता है ,
जब उनके व्हाट्सप्प
को कोई ब्लॉक कर देता हैं !!
कोई नाकों
में दम करता रहता है ,
मैसेंजर में अनाप -सनाप भेजता है !
निजता का आभास भी
उनको नहीं होता है ,
कौन किस हाल में है
फिर भी वो विडिओ कॉल
मैसेंजर पर करता रहता है !
हम भूल बैठे हैं
कि इसमें श्रेष्ठ भी हैं !
उन्हें हम भूल कर मित्र अपना
नहीं कभी समझना !
वे हमारे हैं गुरु और पूज्य ,
फेसबुक चाहे मित्र कहले !
पर उसे तुम श्रेष्ठ कहना !
गलतियाँ कोई भी इंगित जब करे
उसको तुम सहर्ष ही स्वीकार करना !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
09.10.2021.