“प्राचीन भारत और वर्तमान”
लेख:-“प्राचीन भारत और वर्तमान”
श्रेय लेना और हिस्सा बनना,
दोनों में एक समानता हैं !
हिस्सा बने बिना,
श्रेय संभव नहीं है !
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पर हिस्सा बने बिना,
श्रेय लेना !
शरासर बेईमानी हैं,
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और इन चातुर बेईमान लोगों ने
भारतीय समाज में ऐसा जहर घोल रखा है,
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और आज भी जब कीचड़ छटता है,
ये लोग उस पानी में पत्थर फेंक देते है,
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गुलामी की वजहों का दोहन करने की
बजाय दुबारा उसी पथ पर चल रहे है
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भारत संपदा, भौगोलिक दृष्टि से समृद्धिवान् देश था और आज भी है,
पहले विदेशी लूटकर ले जाते थे !
आज हम खुद गरीब, बेसहारा, लाचार-बेबस लोगों से दो वक्त का निवाला छिनकर विदेशों में जमा करवाते हैं,
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भावनाएं है सबकी,
आदर करें !
पर संबंधित व्यक्तियों पर ही थोपें,
सबके साथ जबरदस्ती क्यों !
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धर्म स्थापना नहीं है !
धर्म खोज है !
परम्परा को तोड़े बिन !
खोज संभव नहीं !
आपका आदर्श हो सकता है !
आप आदर्श बन सकते है !
आप आदरणीय हमेशा रहेंगे !
यह द्वंद शंका और मानवता का अनादर है !
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नजरिया व्यक्तिगत हो !
फिर चाहे आदर्श कोई भी हो !
Dr. Mahender Singh.