जय शनिदेव
जय शनिदेव
जय शनिदेव भानु सुत,
कृपा निधान छाया पुत,
यम -यमी ,मनु, ताप्ती ,अश्विनी
तेज ताप तव जाए न बरणी।
श्याम रूप चार भुजा धारी,
मस्तक साजे रतन मुकुट भारी।
कर में त्रिशूल गदा, कुल्हाड़ी,
नील पट वसन गज सवारी।
शंकर शंभू तुम्हें भर दीन्हा
दृष्टि भृकुटी विकराला कीन्हा।
ढैया ,साढ़ेसाती का चक्कर आवे,
टेढ़ी दृष्टि तव जिन पर जावे।
वाहन शनि के सात सुजाना,
हय, गज,गदर्भ मृग जम्बुक सिंह,स्वाना।
जो जो सवारी शनि तुम धारी,
सो -सो विचार विद्वान पुकारी।
गज लक्ष्मी, हय सुख संपति घर आवे।
गदर्भ हानि,सिंह समाज राज लावे।
जंबुक मारे बुद्धि, मृग प्राण संहारे,
चोरी का भय हो जब स्वान पर आवे।
चार चरण तुम्हारे यह नामा,
स्वर्ण ,लोह, चांदी और तमा।
लोह चरण धन नष्ट करावे,
स्वर्ण, चांदी, तांबा शुभ- शुभ करावे।
जिस नर नारी शनि सतावे,
पीपल जल शनि दिन चढ़ावे।
हनुमान शनि चालीसा पाठ करें,
दीपदान कर बहुत सुख पावे।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश