जय विंध्याचल वाली
जय विंध्याचल वाली
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जिसके दर पर ध्यावें मुनि गण, जो वर देने वाली;
शमित करो माँ जग की पीड़ा, जय दुर्गे, माँ काली।
सृजित किया जब सृष्टि विधाता
तुमको ही तब ध्यान कर
पालन करते हरि तृण-तृण का
अनुमति तेरी मानकर,
हरते हैं शिव रौद्ररूप में, कुदरत तब गतिवाली;
शमित करो माँ जग की पीड़ा, जय अंबे, माँ काली।
स्वर्ग-नर्क के केंद्र टूटते
ध्यान धरें सुख त्यागकर
जन्म-मरण के भव बंधन पर
मातु सुदर्शन वार कर,
ज्ञानीजन को ज्ञान रूप में, दर्शन देनेवाली;
शमित करो माँ जग की पीड़ा, जय विमला, माँ काली।
शेरोंवाली की महिमा तो
परिमित नहीं, अनंत है
मातु दरस से आह्लादित जो
भक्त बड़ा वह संत है,
ध्यावौं तुझको हर पल माता, वंदन खप्परवाली;
शमित करो माँ जग की पीड़ा, जय लक्ष्मी, माँ काली।
कलि की कुत्सित छाया छायी
तीनों भुवन में गहरी
मातु हरो यह विपद बड़ी है
चिह्नित गरल है ठहरी,
क्षीण करो माँ खड्ग धार से, शिव आयुध कर वाली;
शमित करो माँ जग की पीड़ा, रौद्रमुखी, माँ काली।
अविरत विनती करता हूँ मैं
सकल कामना त्यागकर
मनोकामना पूरी कर माँ
जग का अब कल्याण कर,
कलिमल अवगुण फैल चुके हैं, दुर्दिन बन, जंजाली;
शमित करो माँ जग की पीड़ा, जय विंध्याचल वाली।
…“निश्छल”